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डॉ. सुजाता चतुर्वेदी

डॉ. सुजाता चतुर्वेदी

 

हिंदी साहित्य एवं भाषा के क्षेत्र में आरंभिक रुचि व रुझान के बीज डॉ. सुजाता चतुर्वेदी के मानस में बचपन से ही साहित्यिक एवं कवित्वपूर्ण पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण अंकुरित होने लगे थे। ब्रजभाषा से लेकर खड़ी बोली हिंदी में काव्य-रचना एवं लेखन उनके परिवार में विगत पाँच पीढ़ियों से चला आ रहा है, जिसकी पांचवीं पीढ़ी में वे स्वयं आती हैं. पं. रूपनारायण चतुर्वेदी, पं. भगवतस्वरूप चतुर्वेदी, पं. पृथ्वीनाथ चतुर्वेदी, पं. गजेन्द्र नाथ चतुर्वेदी, पं. आदित्य कुमार चतुर्वेदी की वंश-परंपरा में सुजाता चतुर्वेदी में स्वाभाविक रूप से हिंदी साहित्य के प्रति गहरा झुकाव और लेखन की वृत्ति पोषित हो रही थी। हिंदी का आकर्षण इतना अधिक था कि उन्होंने विज्ञान वर्ग छोड़कर कला वर्ग और विशेषतया हिंदी को अपने अध्ययन का केंद्र बनाया।

दिल्ली विश्वविद्यालय के जीजस एंड मेरी कॉलेज से हिंदी ऑनर्स में स्नातक और लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातकोत्तर हिंदी किया। स्नातकोत्तर स्तर पर विश्वविद्यालय में सर्वोच्च अंक पाकर स्वर्ण पदक विजेता रहीं साहित्य के साथ-साथ हिंदी भाषा व भाषाविज्ञान की ओर भी सुजाता जी का रुझान था। दिल्ली विश्वविद्यालय से ही उन्होंने एम.फिल. और पी-एच.डी. समाजभाषाविज्ञान के क्षेत्र में की, हिंदी भाषा और भाषाविज्ञान के विभिन्न आयामों पर वे निरंतर शोध में सक्रिय हैं।

संप्रति : डॉ. सुजाता चतुर्वेदी क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं एवं अध्यापन के क्षेत्र में कार्य करते हुए उन्हें लगभग 22 वर्ष हो चुके हैं। शोधकार्य करते हुए डॉ. सुजाता ने हिंदी साहित्य में पर्यावरण चेतना पर भी बहुत काम किया है। इस क्षेत्र में अनेक प्रतिष्ठित संगोष्ठियों, अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में उनके शोधपत्र प्रस्तुत किए गए हैं। इसके अतिरिक्त उनके द्वारा लिखित चार पुस्तकें प्रकाशित हैं एवं एक संपादित पुस्तक है. विभिन्न संगोष्ठियों में सक्रिय प्रतिभागिता व शोधपत्र प्रस्तुति के साथ-साथ हिंदी साहित्य व भाषा से संबद्ध उनके अनेक प्रकाशित शोधपत्र हैं।

हिंदी साहित्य, भाषा एवं समाज भाषा विज्ञान के क्षेत्र में डॉ. सुजाता चतुर्वेदी निरंतर नवीन आयामों के उन्मीलन के प्रयास में शोधरत हैं । 'नाम का व्यक्तित्व पर प्रभाव' ऐसा ही एक प्रयास है। संबोधन शब्दावली, सर्वनाम-प्रयोग, भाषाई कोश आदि पर भी वे शोधकार्य संपन्न कर चुकी हैं। पर्यावरण चेतना के क्षेत्र में भी विविधतामय कार्य कर रही हैं। उनका विश्वास है कि हिंदी में विस्तार की अभूतपर्व क्षमता है आवश्यकतानुरूप ढलने की अपार योग्यता है, समय के बहाव के साथ बहने की अनंत प्रतिभा है और आशामय आश्वस्त भविष्य के प्रति अगाध आस्था है।

मो. 9415486100

E-mail: sujlay@gmail.com

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   2 पुस्तकें हैं|